Rahim Ke Dohe [रहीम के दोहे व्याख्या सहित]

Rahim Ke Dohe :[रहीम के 18+  दोहे हिन्दी अर्थ सहित]

Rahim Ke Dohe में जीवन की सार्थकता अपने दोहे के माध्यम से रहीम दास ने जिंदगी की मुश्किलों को आसान बताया है । उनके नीतिपरक दोहे आज भी प्रचलित और प्रसिद्ध है। रहीमदास जी सभी सम्प्रदाय के प्रति समान आदर रखते थे। मुसलमान होते हुए भी भारतीय संस्कृति से वे भली -भाँति परिचित थे। उन्होंने हिन्दू मुसलमान एकता पर जोर दिया ।By-Rahim Ke DoheBy-Rahim Ke Dohe

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Rahim Ke Dohe [रहीम के दोहे व्याख्या सहित - 2020]
Rahim Ke Dohe [रहीम के दोहे व्याख्या सहित – 2020]

1. तन रहीम है करम बस, मन राखौ ओहि ओर।

जल में उलटी नाव ज्यों, खैंचत गुन के जोर।।

व्याख्या:- रहीम कहते हैं कि मनुष्य को उसकी कार्मेंन्द्रियाँ जैसा करने को कहती है। वह वैसा ही करता है , लेकिन मनुष्य  कर्त्तव्य है कि वह अपने मन को कार्मेंन्द्रियाँ से विमुख करके ईश्वर की ओर आकृष्ट करे। यह उसी प्रकार है है जैसे जल की विपरीत धरा की ओर  नाव को ले जाने के लिए रस्सियों का सहारा लिया जाता है।

2. जो विषया संतन तजी, मूढ़ ताहि लपटात |

ज्यों नर डारत वमन कर, स्वान स्वाद सों खात ||

व्याख्या:- रहीम कहते  हैं कि मनुष्य अपचनीय पदार्थों को उल्टी के माध्यम से बाहर निकाल देता है और उन्हीं पदार्थों को श्वान चटकारे लेकर खता है | ठीक श्वान जैसे प्रवृत्ति मनुष्यों की होती है, वे सांसारिक विषयों को भोगते हैं जिन्हें संत पुरुष त्याग चुके होते हैं |

3. कही रहीम एक दिप तें, प्रगट सबै दुति होय।

तन सनेह कैसे दुरै, दृग दीपक जरू दोय।।

व्याख्या:- रहीम कहते है कि जब दीपक का प्रकाश चारों ओर फैलता है , तो घर का कोना जगमगा उठता है , जब एक दीपक इतना प्रभाव है , तो  मनुष्य के पास तो  दीपक हैं। अतः उसे मन क्या छिपा है , उसके नयन रुपी दीपक बता देते हैं।

4. कही रहीम धन धन बढ़ि घटे, जात धनिन कि बात।

घटै-बढ़ै उनको कहा, घास बेचि जे खात।।

व्याख्या:- रहीम कहते हैं की धन का घटना या बढ़ना धनि लोगों लिए महत्वा रखता है उनके लिए धन का घटना या बढ़ना क्या महत्वा रखेगा जो घास बेच-बेच कर जीवन गुजरा करता है।

5. जो रहीम गति दीप की,सुत  सोय।

बड़ो उजेरो तेहि रहे, गए अंधेरो होय।।

व्याख्या:- रहीम कहते हैं कि दीपक और सुपुत्र एक ही जैसे होते हैं।जिस प्रकार दीपक उजाला फैलता है, उसी प्रकार सुपुत्र अपने कुल का यश फैलता है और जैसे दीपक बुझ जाने पर अंधेरा हो जाता है। वैसे ही सुपुत्र घर से चला जाये तो वहां सूनापन छा जाता है।

6. छोटेन सो सोहैं बड़े, कहि रहीम यह लेख।

सहसन को हय बांधियत, लै दमरी की मेख।।

व्याख्या:- रहीम कहते हैं कि बड़ों की शोभा छोटों से ही होती है।   उदाहरण – घोड़े की कीमत हजारों  होती है।  लेकिन जब तक उनके पैरों में दमड़ी जितनी नाल न ठोकी जाय तब तक उसकी कोई गति नहीं होती।

7. जे गरीब पर हिट करैं, ते रहीम बड़ लोग।

कहाँ सुदामा बापुरो, कृष्ण मिताई जोग।।

 व्याख्या:- रहीम कहते हैं कि जो व्यक्ति गरीबों का मदद करता है,वह बड़ा महँ होता है। उदहारण- सुदामा बहुत गरीब था। लेकिन वह कृष्ण का मित्र था और कृष्ण ने उसे यश प्रदान कर अपने सामान बना लिया। इसलिए श्रीकृष्ण आज भी महान व पूजनीय है। दोनों का मित्रता  भी गुनगन किया जाता है।

8. जोहि अंचल दीपक दुर्यो, हन्यो सो ताहि गात।

रहिमन असमय के परे, मित्र शत्रु ह्वै जात।।

व्याख्या:- रहीम कहते हैं कि इस दोहे में व्यक्ति के बुरे समय के विषय में बताते हुए कहते हैं कि एक गृहणी ने दीपक को हवा के झोकों से बचने के लिए आँचल में छुपा दिया ताकि दीपक भुझे न लेकिन उस गृहणी का बुरा समय होने के कारण उस दीपक ने उसका शरीर को ही जला दिया। इसलिए बुरे समय में मित्र भी शत्रु बन  जाता है।

9. धन थोरो, इज्जत बड़ी, कही ‘रहीम ‘ का बात।

जैसे कुल की कुलवधू , चिथड़न माहिं समात।।

व्याख्या:- रहीम कहते हैं कि यदि किसी मनुष्य के पास धन कम है ; लेकिन इज्जत है , तो उसका जीवन समर्थक है , लेकिन धन और इज्जत नहीं तो उसका जीवन निर्थक है। जैसे – कुलीन परिवार की पुत्रवधु यदि फटे वस्र पहनकर भी सौंदर्य से परिपूर्ण है, तो उसकी कुलीनता पर कोई जाँच नहीं आती।

10. धन दारा अरू सुनत सों , लाग्यों रहै नित चित्त।

नहीं रहीम कोऊ लख्यो , गाढ़े दिन को मित्त।।

व्याख्या:- रहीम कहते हैं कि व्यक्ति सदैव धन पुत्र, स्री आदि बंधुजनों के प्रति आसक्त रहता है। लेकिन जब उस पर संकट आ पड़ता है , तो इनमें से कोई भी सहायता नहीं करता।

कबीर की साखी अर्थ सहित
कबीर की साखी अर्थ सहित

11. रहिमन अति न कीजिये , गहि रहिये निज कानि।

सैजन अति फुले तऊ, डार पात की हानि।।

व्याख्या:- रहीम का कहना है कि मनुष्य को किसी चीज की अति नहीं करनी चाहिए। उसे अपनी मर्यादा नहीं छोड़नी चाहिए। जैसे सहिजन का वृक्ष जब अधिक फूल जाता है, तो उसके डालियाँ पत्ते टूट टूट कर नष्ट हो जाते हैं।

12. रहीम अपनी पेट सों, बहुत कह्यो समुझाय।

जो तू अनखाए रहे, तो सों को अनखाय।।

व्याख्या:- व्यक्ति जितने भी कर्म करता ह, वह अपनी उदर पूर्ति के लिए  इसलिए रहीम अपने पेट को समझाते हुए कहते  हैं कि अरे पेट ! यदि तू बिना खाये पिए रहे, तो तुझसे भला कोई क्यों नाराज होगा।

13. रहिमन कबहु बड़ेन के , नाहीं गर्व को लेस।

भार धरैं संसार को , तऊ कहावत सेस।।

व्याख्या:- रहीम कहते हैं कि  बड़े लोग वे होते हैं जिनमें जरा भी अभिमान नहीं होता। जैसे- पृथ्वी का भर सहन करने के कारण ही सर्पराज शेषनाग कहलाते हैं। शेष का अर्थ नगण्य भी होता है।

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14. रहीम रिस को छांड़ि कै , करौ गरीबी भेस।

मीठी बोली नै चलो, सबै तुम्हारे देस।।

व्याख्या:- रहीम कहते हैं कि  व्यक्ति को सदैव  प्रति विनम्रतापूर्वक व्यवहार करनी चाहिए अथवा सादा व सरल जीवन व्यतीत करनी चाहिए चाहिए। सबके साथ मधुर बोलना चाहिए। कहने का तात्पर्य यह है कि उसे यह समझना चाहिए कि यह संसार ही उसका परिवार है।By-Rahim Ke DoheBy-Rahim Ke DoheBy-Rahim Ke DoheBy-Rahim Ke DoheBy-Rahim Ke DoheBy-Rahim Ke DoheBy-Rahim Ke Dohe

15. रहीमन जिव्हा बावरी, कहि गई सरग पताल।

आपु आपु तो कहि भीतर रही, जूती खात कपाल।।

व्याख्या:- व्यक्ति को सदैव सोच विचार करके बोलना चाहिए। इसी विषय में रहीम कहते हैं कि जीभ तो बावली होती है। कुछ भी बोल मुँह के भीतर छिप जाती है।  लेकिन उसका परिणाम सर को भुगतना पड़ता है। लोग सर पर ही जुतिया बरसते हैं जीभ का को छह नहीं बिगड़ता।

16. रहिमन रहिला की भली, जो परसैं चित लाय |
परसत मन मैलो करे | सो मैदा जरि जाए ||

व्याख्या :- रहीम कहते हैं कि यदि कोई प्रेमभाव से चने की रोटी भी परोसे, तो वह स्वादिस्ट लगती है; लेकिन यदि कोई मन को मलिन करके गेहूं की रोटी भी परोसता है, तो वह भी व्यर्थ है | ऐसी रोटी का जल जाना ही उत्तम होता है |

17. रहिमन राम न उर धरै ,रहत विषय लपटाय |
पसु पसु खर खात सवाद सों, गुलियाए खाय ||

व्याख्या :- रहीम कहते हैं कि मनुष्य सांसारिक भोग विलासिता में इतना डूबा रहता है कि वह भक्ति भाव से विमुख रहता है। यदि मनुष्य सांसारिक भोग से विमुख होकर अपने ह्रदय में राम को धारण कर लें , तो उसका जीवन सार्थक हो जायेगा | लेकिन प्राणी को राम को ह्रदय में इस प्रकार धारण चाहिए। जैसे – पशु को गुड़ जबरन खिलाना पड़ता है ; जबकि वह घास पूस सावधानीपूर्वक स्वाद लेकर खता है।

18. रहिमन रजनी ही भली , पिय सों होय मिलाप।
खोरो दिवस केहि काय को , रहिबो आपुहि।।

व्याख्या :- रहीम कहते हैं कि एक सखी अपनी अन्य सखी कहती है कि दिन के उजाले से अच्छी तो अंधेरि रात ही सुखमय है। अँधेरी रात में कम से कम प्रिय से मिलन हो जाता है। दिन का उजाला तो प्रिय मिलान की बेला में बाधा पहुँचता है।

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