Rahim Ke Dohe In Hindi-रहीम के 80 प्रशिद्ध दोहे

Rahim Ke Dohe In Hindi – रहीम के 75 प्रशिद्ध दोहे

Rahim Ke Dohe – रहीम का पूरा नाम अब्दुर्रहीम खानखाना था। इनका जन्म 1556 में लाहौर (वर्तमान में पाकिस्तान) में हुआ था। इनके पिता बैरम खाँ मुगल सम्राट अकबर के संरक्षक थे।  किन्हीं कारणोंवश अकबर बैरम खाँ से रुष्ट हो गया था और उसने बैरम खा पर विद्रोह का आरोप लगाकर हज करने के मक्का भेज दिया। मार्ग में उसके शत्रु मुबारक खाँ ने उसकी हत्या कर दी।

“धूर धरत नित सीत पै, कहु रहीम केहि काज।

जेहि रज मुनिपत्नी तरी, सो ढूढ़त गजराज।।”

व्याख्या:- एक बार एक हाथी अपनी सूंढ़ से मिट्टी उठाकर अपने सिर पर डाल रहा था। तब एक व्यक्ति ने रहीम से पूछा कि यह ऐसा क्यों कर रहा है? तब रहीम बोले हाथी अपने सिर पर धूल इसलिए डाल रहा है ताकि इसकी भी गौतम नारी अहिल्या की तरह मुक्ति पा जाए। इस धूल में यह उस मुक्तिदायिनी धूल को ढूंढ रहा है।

 “पन्नग बोली पतिव्रता, रति सम सुनो सुजान।

हिम रहीम बेली दही, सत जोजन दहियान।।”

व्याख्या:- रहीम कहते हैं कि हे बुद्धिजनो! सुनो, पान की बेल और पतिव्रता स्त्री का प्रेम एक तरह का होता है। जिस प्रकार पतिव्रता स्त्री अपने पति से बिछड़ कर पातिव्रत्य धर्म की अनुपालन करने से आग में जलकर सती हो जाती है। वैसे ही पान की बेल भी पाला पड़ने से जलकर नष्ट हो जाती है।

“परी रहिबो मरिबो भलो, साहिबो कठिन कलेस।

बामन है बलि को छल्यो, भलो दियो उपदेस।।”

व्याख्या :- दितिपुत्र बलि महादानी होने के साथ अनेक यज्ञ को करने वाला था। उसकी दानशील प्रवृत्ति को देख देवता भयभीत हो गए कि कहीं उनका सिंहासन छीन न जाए। इसलिए वे भगवन विष्णु के पास रक्षा की प्राथना हेतु गये। देवताओं की प्राथना को सुनकर भगवान विष्णु  बौने का रूप धारण करके राजा के बलि के पास गए। 

और उसने तीन पग भूमि का दान माँगा। तब विष्णु ने विराट रूप धारण करके दो पग में पूरा ब्रह्माण्ड नाप डाला और तीसरा  पग बलि के शीश पर रखकर उसे पाताल भेज दिया। उस समय विष्णु ने बाली को उपदेश दिया कि तुम ऐसी तरह पाताल में रहकर सुख भोगो। तुम्हारे अच्छे कर्म के कारण तुम्हे मारना या पीड़ित करना मैं उचित नहीं समझता।

“फरजी साह न ह्वै सके, गति टेढ़ी तासीर।

रहिमन सीधे चाल सों, प्यादो होत वजीर।।”

व्याख्या:- रहीम शतरंज के खेल के मंजे हुए खिलाड़ी थे। इसलिए इस दोहे में उन्होंने शतरंज के खेल के बारे में बताया है कि फरजी गोट , जिसकी चाल टेढ़ी होती है , वह शाह नहीं बन पता जबकि प्यादा जिसकी चाल सीधी होती है , वह वजीर बन है।

Rahim Ke Dohe In Hindi
Rahim Ke Dohe

“रहिमन आंसुआ नैन ढारि, जिय दुख प्रगट करेइ।

जाहि निकारो गेह ते, कस न भेद कह देइ।।”

व्याख्या:- रहीम कहते हैं कि आँखों से निकले आँसू मन की पीड़ा को अभिव्यक्त कर देते हैं। अतः व्यक्ति को विपदा में भी अपने आंसुओं को आँखों में ही रखना चाहिए। जिस प्रकार आँसू मन की पीड़ा को उजागर कर देते हैं उसी प्रकार जिस किसी व्यक्ति को घर से निकाल दिया जाए, तो वह घर का भेद अन्य लोगों के समक्ष क्यों नहीं खोलेगा ?

“अनुचित उचित रहीम लघु , करहिं बड़ेन के जोर।

ज्यों ससि के संजोग तें, पचवत आगि चकोर।।”

व्याख्या:- रहीम कहते हैं कि छोटों पर बड़ों का आश्रय होता है,तो छोटे उचित – अनुचित कार्य को करने में सक्षम होते हैं। जिस प्रकार चकोर पक्षी का चन्द्रमा के प्रति अथवा प्रेम  है , उसी  प्रेम  के वशीभूत होकर वह अग्नि को भी पचा डालता है। आश्चर्य यह है कि अग्नि का दहकता भी महसूस नहीं होती।

“रहीमन बिगरी आदि की, बैन न खर्चे दाम।

हरी बाढ़े आकास लौं, ताऊ बावने नाम।।”

व्याख्या:- रहीम कि जो बात एक बार बिगड़ जाए, उसमें सुधार  नहीं पाता। भले  कितना ही द्रव्य खर्च क्यों न करे। उदहारण के लिए भगवन विष्णु ने राजा  बलि को छलने  लिए अपने  शरीर का आकाश तक विस्तार कर लिया। तब वे आज वामन ही  हैं।

“अमर बेली बिनु मूल की, प्रतिपाल है ताहि।

रहिमन ऐसे प्रभुहिं तजि, खोजत फिरत कहि।।”

व्याख्या:- अमर बेली जिसे आकाश बेल कहा जाता है। इस बेल कि जड़ नहीं होती। यह अन्य वृक्षों के सहारे फलती- फूलती है अथवा इसका पालन परमात्मा है। रहीम कहते हैं कि हे प्राणी! जो सृष्टि के नियम के विरूद्ध कार्य करने करने में सक्षम हैं, तू ऐसा परमात्मा को छोड़कर अन्य जिसको खोज रहा है। वही परमात्मा समस्त जीवों पालन – पोषण करता है।

Rahim Ke Dohe In Hindi
Rahim Ke Dohe In Hindi

“रहिमन बात अगम्य की, कहन सुनन की नहीं।

जे जानत ते कहत नहीं, कहत ते जानत नहीं।।”

व्याख्या:- रहीम कहते हैं कि जिसे ब्रह्मज्ञान हो जाता है , वह इधर उधर कहता नहीं फिरता। इसके अतिरिक्त जो लोग यह लहते हैं कि वे ब्रह्मज्ञानी हैं , उनका ब्रह्म से साक्षात्कार हो चुका है ऐसे लोग ब्रह्म को जानते ही नहीं।

“उगत जाहि किरन सों, अथवा ताहि कांति।

त्यों रहीम सुख – दुख सबै, बढ़त एक ही भातिं।।”

व्याख्या:- रहीम कहते हैं कि जब सूर्योदय होता है तब सूर्य लालिमा लिये होता है और जब अस्त हो जाता है तब भी वह लालिमा लिए होता है। ठीक इसी प्रकार व्यक्ति को भी सुख – दुःख की स्थिति में एक समान रहना चाहिए।

“एक उदर दो चोंच हैं, पंछी एक कुरंड।

कहि रहीम कैसे जिएं, जुदे – जुदे दो पिंड।।”

व्याख्या:- कुरंड एक प्रकार का हंस होता है जिसका पेट तो एक ही होता है ; लेकिन चोंच दो होती है जिनसे वह पेट भरता है। रहीम कहते हैं कि  यदि भगवान ने उसे एक चोंच व दो पेट दिए होते तो वह किस प्रकार जीवित रह सकता था। यह भगवान की उस पक्षी पर कृपा है कि  उसकी दो चोंच है।

Rahim ke dohe
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“कदली, सीप,भुजंग मुख , स्वाती एक गुन  तीन।

जैसी संगती बैठए, तैसोई फल दीन।।”

व्याख्या:- रहीम कहते हैं नक्षत्र में होने वाली बारिश की बूंदें , यदि केले के पत्ते पर गिरती है ,  तो वह कपूर बनती है। सीपी में गिरे , तो मोती और सर्प के मुख में गिरे,तो  विष का रूप धारण करती है। इसलिए कहा जाता है की जैसे संगती में लोग बैठते हैं उन्हें वैसा ही फल मिलताहै।

“चित्रकूट में रमी रहे, रहिमन अवध नरेस।

जा पर बिपदा पडत है, सो आवत यही देस।।”

व्याख्या:- रहीम कहते हैं कि अयोध्या के राजा रामचंद्र ने बनवास के समय कुछ वर्ष चित्रकूट में व्यतीत किये जिसके कारण चित्रकूट को तीर्थ स्थल के रूप में मन जाता है और जो भी विपत्ति में होते हैं वे विपदाओं से मुक्ति पाने के लिए उसी स्थान के शरण को ग्रहण करते हैं।

“जैसी जाकि बुद्धि है, तैसी कहै बनाय।

ताकों बुरो न मानिए, लेन कहां सो जाए।।”

व्याख्या:- रहीम कहते हैं कि मर्यादा पालन करने से व्यक्ति का जीवन भी मर्यादित रहता है और उसका विकास भी होता रहता है। उसके अस्तित्वा को कोई खतरा उत्पन्न नहीं होता। इसके विपरीत जो मर्यादा का उल्लंघन करता है , उसका अस्तित्वा एक न एक दिन नष्ट हो जाता है। ठीक उसी प्रकार जैसे जल मर्यादा में रहकर वह , तो कुछ नहीं होता ; लेकिन मर्यादा का उल्लंघन करते ही उसका अस्तित्वा नष्ट हो जाता है। अर्थात इधिर – उधर बहकर किसी के भी काम नहीं आता।

Rahim Ke Dohe
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Rahim Ke Dohe In Hindi-रहीम के 80 प्रशिद्ध दोहे

“बड़े बड़ाई न करैं, बड़े न बोलैं बोल।

रहिमन हिरा कब कहै, लाख टका मेरो मोल।।”

व्याख्या:- रहीम ने इस दोहे में महापुरुषों के बारे में बताते हुए कहा है कि ऐसे लोग कभी अपनी पढ़ाई नहीं करते और न ही कभी बड़े बोल बोलते हैं। जैसे – हीरा मूल्यवान होता है फिर भी वह कब अपने मुख से अपना मूल्य बताता है।

“निज कर क्रिया रहीम कहि, सुधि भावी के हाथ।

पांसे अपने हाथ में, दांव न अपने हाथ।।”

व्याख्या:- रहीम कहते हैं कि कर्म करना ही मनुष्य के हाथ में होता है। उसका फल ईश्वर के के अधीन है। जैसे – पांसे खिलाड़ी के हाथ में होते हैं लेकिन दावं कैसा लगेगा, यह खिलाड़ी के हाथ में न होकर प्रारबध पर आश्रित होता है।

“बढ़त रहीम धनाढ्य धन, धनौं धनि को साई।

घटै-बढ़ै वाको कहा, भीख मांगि जो खाई।।”

व्याख्या:- रहीम कहते हैं कि  जो व्यक्ति कर्मनिष्ठ होता है, वही व्यक्ति धन का अर्जन करता है और धन उसी का घटता-बढ़ता है।  इसके विपरीत जो व्यक्ति कर्म से विमुख है उसे धन के घटने-बढ़ने का कोई प्रभाव ही नहीं होता। वह मांग मांग कर गुजारा करने में ही विश्वास राखता है।

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“करमहीन रहिमन लखो, धंसो बड़े घर चोर।

चिंतत ही बड़ लाभ के, जगत ह्वै गो भोर।।”

व्याख्या:- रहीम के इस दोहे में कर्म संबंधित भाव की अभिव्यक्ति हुई।  इस दोहे का भाव यह है कि एक दिन एक घर में चोर घुसा। वहां असीम संपदा थी। रातभर वह चोर यही सोचता रहा कि किस वस्तु को चुराऊँ जिससे की मैं धनवान हो जाऊँ। लेकिन धन उसके भाग्य में था ही नहीं क्योंकि सोचते-सोचते सुबह हो गई और घर के लोग जग गये, फलस्वरूप वह भाग्यहीन चोर कुछ भी न चुरा सका।

“ज्यों नाचत कठपुतरी, करम नचावत गात |

अपने हाथ रहीम ज्यों,नहीं आपने हाथ ||”

व्याख्या:- रहीम कहते हैं कि जैसे -कठपुतली को नचाने वाला कठपुतली की डोर अपने हाथ में रखता है | देखने वालों को कठपुतली दिखाई देताी  है ; लेकिन नचाने वाले के हाथ नहीं उसी प्रकार मनुष्य के कर्म उसे नचाते हैं और वह नाचने को मजबूर होता है | मनुष्य वैसा ही है जैसे अपने ही हाथ अपने वश में न हो |

“रहीम विद्या बुद्धि नहिं , नहीं धरम जस दान।

भू पर जनम वृथा धरै , पसु बिन पूंछ – विषान।।”

व्याख्या:- रहीम कहते   विद्याविहीन , धर्म का आचरण न करने वाला ,दान्हीं तथा जो यशस्वी भी न हो ,ऐसा व्यक्ति उसी प्रकार है बिना पूंछ पूंछ के पशु पर भारस्वरूप कहते हैं उसका जीवन व्यर्थ है।

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“रहिमन व्याह बियाधि है , सकहु तो साहु बचाय।

पायन बड़ी पड़त है , ढोल बजाय – बजाय।।”

व्याख्या:- भक्त कवि रहीम विवाह को रोग की संज्ञा  कहते हैं कि हे पुरूषों !यदि तुम विवाह रुपी रोग से बच सकते हो , तो आवश्य बचो।  यह तो ऐसी बेड़ी है जिसे ढोल बजा बजाकर पैरों  जाता है।

“संपत्ति भरम गंवाइके , हाथ रहत कुछ नाहिं।

ज्यों  रहीम ससि रहत है , दिवस  आकासहिं माहिं।।”

व्याख्या:- रहीम कहते हैं कि जब मनुष्य अपनी सम्पाती को गावं देता है। उस समय लोग उसे  उपेक्षा की दृष्टि से देखते हैं। उसकी दसा उस चन्द्रमा की भांति होते है , जो दिन में भी  ही ; लेकिन उसका प्रभाव निस्तेज है। इसलिए वह लोगों की दृष्टि से ओझल होता है।

“रहिमन निज मन की बिथा , मनहि राखो गोय।

सुनी अठिलैहें लोग सब ,बांटि न लेहैं कोय।।”

व्याख्या:- रहीम कहते हैं  कि यदि तुम्हारे मन में किसीन प्रकार की कोई पीड़ा है , किसी के सामने अभिव्यक्त न करो। ओपन ही मन में रखो ;क्योंकि लोग तुम्हारे दुःख को देखकर उसकी हसीं उड़ायेगे। उसको बाटने वाला कोई नहीं है।

“रहिमन निज सम्पत्ति बिना , कोउ न बिपति सहाय।

बिनु पानी ज्यों जलज को , नहिं रवि सकै  बचाय।।”

व्याख्या:- रहीम कहते हैं जब मनुष्य के पास अपना धन होता है , तो दूसरे भी मुँह मोड़ लेते हैं। जैसे – कमल जल में खिलता है , सूर्य भी उसे और विकसित करता है ; लेकिन जब जल ही सूख जाए तब मुरझाये हुए कमल को सूर्य भी विकसित कर नहीं पता।

“एकै साधे सब सधै, सब साधे सब जाय।

रहिमन मूलहिं सींचिबो, फूलै फलै अघाय”

व्याख्या:- रहीम दास जी कहते हैं कि उचित समय आने पर पेड़ में फल उगता है। नुकसान का समय आने पर वह गिर जाता है। किसी की भी दशा हमेशा एक जैसी नहीं होती, इसलिए व्यर्थ में पश्चाताप करना व्यर्थ है।

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“रहिमन जेक बाप को , पानी पिअत न कोय।

ताकि गैल अकास लौं ,क्यों न कालिमा होय।।”

व्याख्या:- रहिम कहते कि बादलों का पिता समुद्र है। जिसका जल खरा होने के कारण कोई भी नहीं पीता। पिता की यही कलिमा पुत्र  बदल के साथ – साथ आकाश में छा  जाती है। वह इसलिए काले नजर आते हैं कि वह कालिमा समुद्र के दुष्कर्मों का प्रतिक है।

“रहिमन वहां न जाइये , जहाँ कपट को हेत।

हम तन ढारत ढेकुली , सींचत आपनो खेत।।”

व्याख्या:-  रहिमन कहते हैं कि उस स्थान पर कभी नहीं  चाहिये ,जहाँ कपटपूर्ण व्यवहार हो। जैसे – ढेकुली को चलाने वाला पानी से भरे मटके को उड़ेलता तो हमारी ओर है , जैसे हमें ही पानी पीला रहा हो। लेकिन वास्तव में उस पानी से अपनी ही खेत को सींचता है।

“स्वासह तुरिय उच्चरै , तिय है निहचल चित्त।

पूत पूरा घर जानिए , रहिमन तीन पवित्त।।”

व्याख्या:- रहीम कहते हैं कि जब जीवात्मा तुरीयावस्था में पहुंच जाती है तब उसकी तीनों वृत्तियां अर्थात मन , बुद्धि व अहंकार अचलयमान (स्थिर) हो जाती है। उस अवस्था में जीवात्मां का परमात्मा से मिलना होता है तथा उसके तीनों गुण नष्ट हो जाते हैं।

“रहिमन वित्त अधर्म को , जरत न लागै बार।

चोरी करि होरी रची , कई तनिक मेंछार  छार।।”

व्याख्या:- रहीम कहते हैं की शक्ति अधर्म पर अधर्म  आश्रित होती है , उसे नस्ट होने  में तनिक  भी देर  लगती। उदहारण  के तौर पर हिरण्यकश्यप की बहन होलिका ने अपने भाई  कहने पर अपने भतीजे भक्त प्रह्लाद को जलने के लिए चोरी छिपे होली आयोजित की तथा उस होली में प्रह्लाद को  लेकर बैठ गई। कहा जाता  होलिका के पास ऐसा वरदानी दुपट्टा था जो अग्नि में जलता नहीं था। लेकिन प्रह्लाद पर भगवन की कृपा थी। जिसके कारण होलिका का वह दुपट्टा हवा में उड़कर पर गिर पड़ा और होलिका जलकर राख  हो गई।

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“खरच बढ्यौ उद्यम भट्यौ , नृपति निठुर मन कीन।

कहु रहीम कैसे जिए , थोरे जल की मीन।।”

व्याख्या:- रहीम ने इस दोहे में अपनी विपन्नवस्था को बतलाते हुए कहा है कि जैसे – मछली को यदि नदी में से निकालकर थोड़े से जल में रख दिया जाय ,तो वह कैसे जीवित रहेगा। ठीक उसी प्रकार मेरे खर्च में तो कोई कटौती नहीं हुई। लेकिन आय के स्रोत सीमित रह गए। इस पर भी बादशाह इतना कठोर हो गया गया कि  वह कोई  मदद नहीं करता।

“चाह गई चिंता मिटी , मनुआ बेपरवाह।

जिनको कछु न चाहिये , वे  साहन साह।।”

व्याख्या:- रहीम कहते हैं कि जब मेरे मन में सांसारिक सुख पाने की कोई कामना ही नहीं रही , तो मेरी सारी चिंतायें नष्ट हो गई और  मन निश्चिंत हो गया। इसलिए जिनको सांसारिक  की चाहत नहीं होती , उन्हें राजाओं का भी राजा कहा जाता है।

“छिमा बड़ेन को चाहिये , छोटेन को उत्पात।

का रहीम हरि को घट्यौ , जो भृगु मरी लात।।”

व्याख्या:- रहीम कहते हैं की बड़ों को सदैव क्षमताशील होना चाहिए।  छोटों  का तो स्वाभाव ही उत्पाती होता है। इसलिए यदि बड़े लोग यदि छोटों को क्षमा कर दें , तो उनका मान घटता नहीं बल्कि बढ़  जाता है। जैसे – भृगु – ऋषि ने भगवन विष्णु के वक्ष पर प्रहार कर दिया , तो क्या  विष्णु का महत्त्व घाट गया। अपितु  आज भी लोग भगवन विष्णु उच्च स्थान प्रदान करके उनकी पूजा करते  हैं।

“जसी पैर सो सहि रहै , कहि रहीम यह देह।

धरती पर ही परत है ,सहित घाम औ मेह।।”

व्याख्या:- सहनशीलता सबसे बड़ा गुण है। इसलिए व्यक्ति को जैसी भी परिस्थिति आ जाए उसे सहन कर लेना चाहिए। उदाहरणतया – पृथ्वी सहिष्णु है। सर्दी ,  गर्मी , बरसात आदि सबको सहन करती है। फिर यह शरीर भी तो पृथ्वी का ही रूप है। अतः व्यक्ति को भी पृथ्वी से सीख लेते हुए सहिष्णु बनना चाहिये है।

Rahim Ke Dohe
Rahim Ke Dohe

“तरुवर फल नहिं खात हैं , सरवर पियहिं न पान।

कहि ‘रहीम’ परकाज हित , संपत्ति संपत्ति संचहि सुजान।।”

व्याख्या:- रहीम कहते हैं कि सज्जन ही संसार में परोपकार करने के लिए जीवित रहते हैं। जैसे – वृक्ष स्वंय कभी फल नहीं खाते , न ही सरोवर अपना जल स्वयं पिता है। लेकिन ये परोपकार के लिये ही जीवित रहते हैं। इसलिए यदि कोई मनुष्य अपनी संपत्ति का कुछ अंश परोपकार के लिये व्यय करें , तो इसमें उसकी बड़ाई होती है।

“आदर घटे नरेस ढिंग , बसे रहे कछु नहिं।

जो रहीम कोटिन मिले , धिग जीवन जग माहिं।।”

व्याख्या:- इस दोहे में रहीम कहते हैं कि यदि कोई राजा राजोचित गौरव से हीन हो जाए , तो  उस राजा के आश्रित को  अथवा किसी भी गुणीजन को उस राजा  पास अथवा उसके  राज्य में नहीं रहना  चाहिए। संसार में ऐसे गुणीजन धिक्कारने योग्य है ,जो ऐसे राजा के आश्रय में रहता है। भले ही उसे राजा से करोड़ों क्यों न मिले।

“अब रहीम मुश्किल पड़ी , गाढ़े दोऊ काम।

सांचे से तो जग नहीं , झूठे मिलैं न राम।।”

व्याख्या:- रहीम कहते हैं कि मैं बड़ी मुश्किल में पड़ गया हूँ। यदि सच बोलता हूँ , तो सांसारिक सम्बन्धों पर आँच आती है और यदि झूठ बोलता हूँ , तो राम से बिछड़ जाता हूँ। बड़ी ही मुश्किल बड़ी घड़ी  आन पड़ी  है।

 “ओछो  काम बड़े  करैं , तौ न बड़ाई  होय।

ज्यों रहीम हनुमंत को , गिरिधर कहै न कोय।।”

व्याख्या:- रहीम कहते हैं कि ये संसार की नीति है कि यदि कोई छोटा व्यक्ति बड़ा काम कर दे , तो लोग उसकी बड़ाई नहीं करते। लेकिन बड़े लोग यदि छोटा सा काम यदि कर भी दे , तो लोग प्रशंसा का पूल बांध देते हैं। जैसे हनुमान जी संजीवनी बूटी के लिए समूचे द्रोण पर्वत को ही उठा ले आये ; लेकिन  उन्हें  कहा जाता। जबकि कृष्ण ने गावर्धन पर्वत को धारण किया , तो लोग आज भी उन्हें गिरिधर कहते हैं।

“रहिमन मनहि लगाईं कै, देख लेहूँ किन कोय।

नर को बस करिबो कहा, नारायण बस होय”

अर्थ: रहीम दास जी कहते हैं कि अगर आप एकाग्र मन से काम करेंगे तो आपको सफलता अवश्य मिलेगी। इसी तरह, यदि कोई व्यक्ति अपने दिल से भगवान की इच्छा रखता है, तो वह भगवान को भी अपने अधीन कर सकता है।

Rahim Ke Dohe
Rahim Ke Dohe

“उरंग  तुरंग नारी नृपति ,नीच जाति हथियार।

रहीमान  उन्हें सँभारिये , पलटत लगौ न बार।।”

व्याख्या:- रहीम व्यक्ति को परामर्श देते हुए कहते हैं कि उसे सर्प ,घोड़े नारी , राजा ,नीच जाती से सदैव बच कर रहना चाहिये अथवा उनसे बनाकर रखना चाहिए क्योंकि न जाने कब  जाए। यदि इनसे दुश्मनी हो जाए , तो ये पलटकर वार करने से नहीं चूकते।

“तन रहीम है करम बस, मन राखौ ओहि ओर।

जल में उलटी नाव ज्यों, खैंचत गुन के जोर।।”

व्याख्या:- रहीम कहते हैं कि मनुष्य को उसकी कार्मेंन्द्रियाँ जैसा करने को कहती है। वह वैसा ही करता है , लेकिन मनुष्य  कर्त्तव्य है कि वह अपने मन को कार्मेंन्द्रियाँ से विमुख करके ईश्वर की ओर आकृष्ट करे। यह उसी प्रकार है है जैसे जल की विपरीत धरा की ओर  नाव को ले जाने के लिए रस्सियों का सहारा लिया जाता है।

“जो विषया संतन तजी, मूढ़ ताहि लपटात |

ज्यों नर डारत वमन कर, स्वान स्वाद सों खात ||”

व्याख्या:- रहीम कहते  हैं कि मनुष्य अपचनीय पदार्थों को उल्टी के माध्यम से बाहर निकाल देता है और उन्हीं पदार्थों को श्वान चटकारे लेकर खता है | ठीक श्वान जैसे प्रवृत्ति मनुष्यों की होती है, वे सांसारिक विषयों को भोगते हैं जिन्हें संत पुरुष त्याग चुके होते हैं |

“कही रहीम एक दिप तें, प्रगट सबै दुति होय।

तन सनेह कैसे दुरै, दृग दीपक जरू दोय।।”

व्याख्या:- रहीम कहते है कि जब दीपक का प्रकाश चारों ओर फैलता है , तो घर का कोना जगमगा उठता है , जब एक दीपक इतना प्रभाव है , तो  मनुष्य के पास तो  दीपक हैं। अतः उसे मन क्या छिपा है , उसके नयन रुपी दीपक बता देते हैं।

Rhaim Ke dohe
Rhaim Ke dohe

“कही रहीम धन धन बढ़ि घटे, जात धनिन कि बात।

घटै-बढ़ै उनको कहा, घास बेचि जे खात।।”

व्याख्या:- रहीम कहते हैं की धन का घटना या बढ़ना धनि लोगों लिए महत्वा रखता है उनके लिए धन का घटना या बढ़ना क्या महत्वा रखेगा जो घास बेच-बेच कर जीवन गुजरा करता है

“जो रहीम गति दीप की,सुत  सोय।

बड़ो उजेरो तेहि रहे, गए अंधेरो होय।।”

व्याख्या:- रहीम कहते हैं कि दीपक और सुपुत्र एक ही जैसे होते हैं।जिस प्रकार दीपक उजाला फैलता है, उसी प्रकार सुपुत्र अपने कुल का यश फैलता है और जैसे दीपक बुझ जाने पर अंधेरा हो जाता है। वैसे ही सुपुत्र घर से चला जाये तो वहां सूनापन छा जाता है।

“छोटेन सो सोहैं बड़े, कहि रहीम यह लेख।

सहसन को हय बांधियत, लै दमरी की मेख।।”

व्याख्या:- रहीम कहते हैं कि बड़ों की शोभा छोटों से ही होती है।   उदाहरण – घोड़े की कीमत हजारों  होती है।  लेकिन जब तक उनके पैरों में दमड़ी जितनी नाल न ठोकी जाय तब तक उसकी कोई गति नहीं होती।

“जे गरीब पर हिट करैं, ते रहीम बड़ लोग।

कहाँ सुदामा बापुरो, कृष्ण मिताई जोग।।”

व्याख्या:- रहीम कहते हैं कि जो व्यक्ति गरीबों का मदद करता है,वह बड़ा महँ होता है। उदहारण- सुदामा बहुत गरीब था। लेकिन वह कृष्ण का मित्र था और कृष्ण ने उसे यश प्रदान कर अपने सामान बना लिया। इसलिए श्रीकृष्ण आज भी महान व पूजनीय है। दोनों का मित्रता  भी गुनगन किया जाता है।

“बड़ा हुआ तो क्या हुआ, जैसे पेड़ खजूर।

पंथी को छाया नहीं, फल लागे अति दूर”

व्याख्या:- बड़े होने का मतलब यह नहीं है कि इससे किसी को फायदा होगा। जैसे ताड़ का पेड़ बहुत बड़ा होता है लेकिन उसका फल इतना दूर होता है कि उसे तोड़ना मुश्किल होता है।

Rahim Ke Dohe
Rahim Ke Dohe

“जोहि अंचल दीपक दुर्यो, हन्यो सो ताहि गात।

रहिमन असमय के परे, मित्र शत्रु ह्वै जात।।”

व्याख्या:- रहीम कहते हैं कि इस दोहे में व्यक्ति के बुरे समय के विषय में बताते हुए कहते हैं कि एक गृहणी ने दीपक को हवा के झोकों से बचने के लिए आँचल में छुपा दिया ताकि दीपक भुझे न लेकिन उस गृहणी का बुरा समय होने के कारण उस दीपक ने उसका शरीर को ही जला दिया। इसलिए बुरे समय में मित्र भी शत्रु बन  जाता है।

“धन थोरो, इज्जत बड़ी, कही ‘रहीम ‘ का बात।

जैसे कुल की कुलवधू , चिथड़न माहिं समात।।”

व्याख्या:- रहीम कहते हैं कि यदि किसी मनुष्य के पास धन कम है ; लेकिन इज्जत है , तो उसका जीवन समर्थक है , लेकिन धन और इज्जत नहीं तो उसका जीवन निर्थक है। जैसे – कुलीन परिवार की पुत्रवधु यदि फटे वस्र पहनकर भी सौंदर्य से परिपूर्ण है, तो उसकी कुलीनता पर कोई जाँच नहीं आती।

“धन दारा अरू सुनत सों , लाग्यों रहै नित चित्त।

नहीं रहीम कोऊ लख्यो , गाढ़े दिन को मित्त।।”

व्याख्या:- रहीम कहते हैं कि व्यक्ति सदैव धन पुत्र, स्री आदि बंधुजनों के प्रति आसक्त रहता है। लेकिन जब उस पर संकट आ पड़ता है , तो इनमें से कोई भी सहायता नहीं करता।

“माह मास लहि टेसुआ मीन परे थल और।

त्यों रहीम जग जानिए, छुटे आपुने ठौर”

अर्थ: माघ महीने के आते ही टेसू (पलाश) के पेड़ की अवस्था और पानी से बाहर धरती पर पड़ी मछलियाँ बदल जाती हैं। इसी प्रकार, दुनिया में अन्य चीजों की स्थिति भी दुनिया में उनके स्थान से मुक्त होने के बाद बदल जाती है। मछली पानी से बाहर आती है और उसी तरह मर जाती है जैसे दुनिया की अन्य चीजों में भी उनकी स्थिति होती है।

“रहिमन अति न कीजिये , गहि रहिये निज कानि।

सैजन अति फुले तऊ, डार पात की हानि।।”

व्याख्या:- रहीम का कहना है कि मनुष्य को किसी चीज की अति नहीं करनी चाहिए। उसे अपनी मर्यादा नहीं छोड़नी चाहिए। जैसे सहिजन का वृक्ष जब अधिक फूल जाता है, तो उसके डालियाँ पत्ते टूट टूट कर नष्ट हो जाते हैं।

Rahim Ke Dohe
Rahim Ke Dohe

“रहीम अपनी पेट सों, बहुत कह्यो समुझाय।

जो तू अनखाए रहे, तो सों को अनखाय।।”

व्याख्या:- व्यक्ति जितने भी कर्म करता ह, वह अपनी उदर पूर्ति के लिए  इसलिए रहीम अपने पेट को समझाते हुए कहते  हैं कि अरे पेट ! यदि तू बिना खाये पिए रहे, तो तुझसे भला कोई क्यों नाराज होगा।

“रहिमन कबहु बड़ेन के , नाहीं गर्व को लेस।

भार धरैं संसार को , तऊ कहावत सेस।।”

व्याख्या:- रहीम कहते हैं कि  बड़े लोग वे होते हैं जिनमें जरा भी अभिमान नहीं होता। जैसे- पृथ्वी का भर सहन करने के कारण ही सर्पराज शेषनाग कहलाते हैं। शेष का अर्थ नगण्य भी होता है।

Rahim Ke Dohe :[रहीम के दोहे हिन्दी अर्थ सहित]

“रहीम रिस को छांड़ि कै , करौ गरीबी भेस।

मीठी बोली नै चलो, सबै तुम्हारे देस।।”

व्याख्या:- रहीम कहते हैं कि  व्यक्ति को सदैव  प्रति विनम्रतापूर्वक व्यवहार करनी चाहिए अथवा सादा व सरल जीवन व्यतीत करनी चाहिए चाहिए। सबके साथ मधुर बोलना चाहिए। कहने का तात्पर्य यह है कि उसे यह समझना चाहिए कि यह संसार ही उसका परिवार है।

“रहीमन जिव्हा बावरी, कहि गई सरग पताल।

आपु आपु तो कहि भीतर रही, जूती खात कपाल।।”

व्याख्या:- व्यक्ति को सदैव सोच विचार करके बोलना चाहिए। इसी विषय में रहीम कहते हैं कि जीभ तो बावली होती है। कुछ भी बोल मुँह के भीतर छिप जाती है।  लेकिन उसका परिणाम सर को भुगतना पड़ता है। लोग सर पर ही जुतिया बरसते हैं जीभ का को छह नहीं बिगड़ता।

“पुरूस पूजै देबरा तिय पूजै रघुनाथ।

कहि रहीम दोउन बने पड़ो बैल के सा”

व्याख्या:- पति कई देवी-देवताओं की पूजा करते हैं जैसे जादू मंत्र आदि। वही पत्नी राम यानी रघुनाथ की पूजा करती है। जब तक दोनों मैच नहीं हो जाते, घरवालों की गाड़ी ठीक से नहीं चल सकती। इसलिए, दोनों के संतुलित विचारों और व्यवहार के कारण, केवल घरेलू कार ही आगे बढ़ सकती है।

Rahim Ke Dohe
Rahim Ke Dohe

“रहिमन रहिला की भली, जो परसैं चित लाय |
परसत मन मैलो करे | सो मैदा जरि जाए ||”

व्याख्या:- रहीम कहते हैं कि यदि कोई प्रेमभाव से चने की रोटी भी परोसे, तो वह स्वादिस्ट लगती है; लेकिन यदि कोई मन को मलिन करके गेहूं की रोटी भी परोसता है, तो वह भी व्यर्थ है | ऐसी रोटी का जल जाना ही उत्तम होता है |

“रहिमन राम न उर धरै ,रहत विषय लपटाय |
पसु पसु खर खात सवाद सों, गुलियाए खाय ||”

व्याख्या:- रहीम कहते हैं कि मनुष्य सांसारिक भोग विलासिता में इतना डूबा रहता है कि वह भक्ति भाव से विमुख रहता है। यदि मनुष्य सांसारिक भोग से विमुख होकर अपने ह्रदय में राम को धारण कर लें , तो उसका जीवन सार्थक हो जायेगा | लेकिन प्राणी को राम को ह्रदय में इस प्रकार धारण चाहिए। जैसे – पशु को गुड़ जबरन खिलाना पड़ता है ; जबकि वह घास पूस सावधानीपूर्वक स्वाद लेकर खता है।

“रहिमन रजनी ही भली , पिय सों होय मिलाप।
खोरो दिवस केहि काय को , रहिबो आपुहि।।”

व्याख्या:- रहीम कहते हैं कि एक सखी अपनी अन्य सखी कहती है कि दिन के उजाले से अच्छी तो अंधेरि रात ही सुखमय है। अँधेरी रात में कम से कम प्रिय से मिलन हो जाता है। दिन का उजाला तो प्रिय मिलान की बेला में बाधा पहुँचता है।

“रहीम अपने गोत को, सबै चहत उत्साह |

मृग उछरत आकास को, भूमि खनत बराह ||”

व्याख्या:-रहीम कहते हैं कि अपने अपने वंश को सभी चाहते हैं सभी अपने वंश की परम्परा का भली भांति निर्वाह करते हैं |जैसे मृग चन्द्रमा का जाता है इसलिए वह आकाश की और उछलता रहता है। भगवान विष्णु ने वराह का अवतार लेकर धरती को पाताल लोक से हरिण्याक्ष का वध करके निकाला था। यही कारन है कि वराह आज भी धरती को खोदता फिरता है।

Rahim ke Dohe
Rahim ke Dohe

“यद्यपि अवनि अनेक है , कूपवंत सरिताल।

रहीम मानसरोवरहिं , मनसा करत मराल मराल।।”

व्याख्या:- रहीम कहते हैं कि हालाँकि इस पृथ्वी पर गहरे कुंओ और तालाबों जी कई कमीं नहीं। फिरभी हंस मनसरोरार में ही रहना पसंद करता है। अर्थात जिसका  जिसमें रुचि रहता है, वही प्रिय होता है, उसे छोड़कर कहीं और मन नहीं ठहरता है।

“नैन सलोने मधु, कहु रहीम घटी कौन।

मिठो आवे लोन पर, अरु मीठे पर लौन।।”

व्याख्या:- रहीम कहते हैं की सुन्दर नयन और मधुर होठ दोनों का अपना महत्वा है।  दोनों में से कोई भी किसी तरह काम नहीं है। इनकी विशेषता यही है कि जिस प्रकार नमकीन खाने पर मीठा पसंद आता है तथा मीठा खाने पर नमकीन अच्छा लगता है उसी प्रकार की स्थिति नयनो और होठ की होती है।

“जल में बसै कुमोदिनी, चंद्र बसाय आकास।

जो जाहिं के भावतें, सो ताहिं के पास।।”

व्याख्या:- कमलिनी जल में ही खिलती है तथा चन्द्रमाँ आकाश में ही निकलता है फिर भी दोनों का प्रेम इतना अधिक होता है कि कमलिनी तभी मिलती है जब चन्द्रमाँ का उदय होता है।

“रहीम करि  सम बल नहीं, मानत प्रभु की धाक।

दांत दिखावट दीन ह्वै, चलत घिसावत नाक।।”

व्याख्या:- रहीम कहते हैं कि कोई व्यक्ति कितना भी बलवान क्यों न हो परन्तु उसके मालिक के सामने उसका सारा बल और और चतुराई ठीक वैसा ही धरी की धरी रह जाती है जैसे हाथी महाबलशाली होने पर भी अपने मालिक के आगे कुछ नहीं कर पाता क्योंकि उस पर नियंतरण रखता है। इसलिए जब महावत हाथी पर सवार होता है , तो वह केवल अपनी सूंढ़  रगड़ता एवं दीनतावश दांत दीखता हुआ चलता रहता है।

Rahim Ke Dohe
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“यह रहीम निज संग लौ, जनमत जगत न कोय। 

बैर, प्रीति, अभ्यास जस, होत-होत ही होय।।”

व्याख्या:- रहीम कहते है कि  कोई भी व्यक्ति जन्म के साथ कुछ भी अपने संग लेजर नहीं आता। वह इस संसार में ही सब कुछ।  इसी को अभिव्यक्त करते हुए कहते हैं कि किसी भी व्यक्ति में शत्रुता, प्रेम, अभ्यास, यश धीरे धीरे ही आते हैं। अर्थात मनुष्य के अंदर संस्कार अथवा भाव संसार के लोगों द्वारा ही प्राप्त होते हैं। जन्मजात नहीं आते।

“यह रहीम मनै नहीं , दिल से नवा जो होय। 

चिटा चोर कमान के, नए तो अवगुण होय।।”

व्याख्या:- रहीम कहते हैं कि झुकना तो प्रायः विनम्रता की निशानी होती है। परन्तु यह जरूरी नहीं जो झुकता है वो दिल से अच्छा हो।  हो सकता है कोई नई  चाल चल रहा हो। जैसे – जब चिता झुकता है तो वह आक्रमण करने वाला होता है। चोर जब किसी के घर में चोरी करने के लिए घुसता है , तो वह  छेद  करने हेतु झुकता है। इस प्रकार किसी को बाण  से मरने हेतु कमान को थोड़ा सा झुकया जाता है।

“याते जान्यो मन भयो, जारि बरि भसम बनाय। 

रहिमन जाहि लगाइए, सोई रूखो ह्वै जाय।।”

व्याख्या:-रहीम कि यदि किसी व्यक्ति का मन उदास-उदास रहने लगता है, तो उसको कुछ भी अच्छा नहीं लगता है।  यह बात उस समय महसूस हुई जब उसके उदास मन की भस्म  दूसरे को लगने से वह भी उदास अथवा विरक्त हो गया।  अर्थात उसका आचार-व्यवहार भी रुखा-सूखा सा हो गया।

Rahim Ke Dohe In Hindi
Rahim Ke Dohe In Hindi

20+Rahim Ke Dohe[रहीम के दोहे व्याख्या सहित-2020]

“रहिमन कहत सुमेट सों, क्यों न भयो तू पीठ। 

रीते अनरीते करै, भरत बिगरै दीठ।।”

व्याख्या:- रहीम कहते हैं कि जब पेट खली होता है, तो भी वह दुष्प्रवृत्तियों की और चल जाता है ; लेकिन जब यह पापी पेट भरा  होता है तब भी दुष्कर्म करता है। अतः वे कहते हैं कि अरे पेट तू पीठ की तरह सपाट क्यों नहीं हुआ। पीठ को भोजन की जरूरत नहीं होती। तब भी वह बोझ ढोने जैसा दुःख सहन करती है। रहिमन

“रहीमन धारिया रहंट की, त्यों ओछे की डीठ। 

रीतेहि सनमुख होत है, करी दिखावै पीठ।।”

व्याख्या:- रहीम नीचे व्यक्ति की तुलना रहंट मटकी से करते हुए कहते हैं कि किस तरह रहतट मटकी जब भी भरी होती है , तो वह सामने नहीं आती पीठ दिखा देते हैं और जब खली होती है ,तो दसमने दिखाई पड़ने लगती है। उसी तरह नीच व्यक्ति जब सुखी जीवन व्यतीत करता रहता है तब अपनी  सूरत नहीं दिखता तथा जब उसपर कोई मुसीबत आ जाती है , तो सामने आकर गिड़गिड़ाने लगता है।

“राज करत राजपूतनी, देस रूप को दीप। 

कर घूंघट पर ओट कै, आवत पियहि समीप।।”

व्याख्या:- रहीम कहते हैं कि राजपूत की पत्नी  ही राज गद्दी पर न बैठे पर राज्य का सारा निर्णय उसी का होता है। उसके रूप रंग पर मोहित होकर राजपूत राजा उसी की बात को महत्वा देता है। फिर  सामने आकर कोई निर्णय न ले सकती हो परन्तु  आड़ से वह राजकाज में स्वामी की सहायता करती है।

“राजपूति चांवर भरी, जो कदाचि घटी जाय। 

कै रहीम मलिबो भलो, कै स्वदेस तजि जाय।।”

व्याख्या:- रहीम कहते हैं कि  यदि राजपूत शासक की शक्ति छिण जाये, तप वह जीवित रहंव से अधिक मरना पसंद करता है या अपने देश को ही छोड़ देना पसंद करता है।

Rahim Ke Dohe
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“होय न जाकी छांह ढिग, फल रहीम अति दूर। 

बढ़िहू सो बिनु काज ही, जैसे तार खजूर।।”

व्याख्या:- रहीम कहते हैं कि वह व्यक्ति जिनके पास धन तो बहुत होता है , फिर भी वे  सहायता नहीं कर सकते हैं। महास्वार्थी होते हैं। वे लोग ताड़ और खजूर   होते हैं, जो देखने में तो  हैं और जिनके पेड़ में फल भी खूब होते हैं ; परन्तु दूर होने के कारन किसी का भूख नहीं मिटा सकते हैंम और इनकी छाया भी इतनी कम होती है। रहीम कि  कोई राहगीर उनके निचे बैठकर आराम कर सकता।

“हित रहीम इतऊ करै, जाकी जिती बिसात। 

नहिं यह रहै , नहिं वर रहै, रहै कहन को बात।।”

व्याख्या:- रहिम कहते है कि मृत्यु अटल सत्य है अर्थात जिसका जन्म हुआ है, उसे मरना तय होता है। अतः सभी को एक दूसरे से इतना प्रेम भाव अवश्य रखना चाहिए जितनी उसकी सामर्थ्य है। यदि ऐसा न हो तो इस संसार में न तो प्रेम रहता और न प्रेम करने वाले। बाकि रह जाते हैं बस उनकी यादें।

 “महि नभ सर पंजर कियो, रहिमन बल अवसेष। 

सो अर्जुन बैराट घर, रहे नारि के भेष।।”

व्याख्या:- रहीम भाग्य की महत्ता बताते हैं कि जो अर्जुन धनुर्विद्या का महाज्ञाता एवं पराक्रमी था। जिस अर्जुन ने खांडव वैन के रक्षा हेतु अपने बल से धरती तथा आकाश को अपने बाणों से आच्छादित कर दिया था। वही वीर अर्जुन भाग्य की विपरीतता के कारण विराट नरेस के यहाँ उनकी पुत्री उत्तरा को नृत्य संगीत की शिक्षा देने हेतु एक साल तक नारी के भेष में रहा था।

“साधु सराहै साधुता, जती जोखिता जान।

रहिमन सांचे सुर को, बैरी करे बखान।।”

व्याख्या:- यह स्वाभाविक है कि जो जैसा सांगत में रहता उसी की प्रसंसा करता है। जिस तरह साधु लोग साधुता की प्रशंसा करते हैं जबकि ज्ञानजन ज्ञान का बखान करते हैं इसके विपरीत जब कोई शूरवीर अपने पराक्रम से किसी सत्रु को हरा देता है, तो उसके पराक्रम की प्रशंसा किए बिना शत्रु भी नहीं रह पता है।

Rahim ke Dohe
Rahim ke Dohe

“रहिमन तीर की चोट तैं, चोट परे बचि जाय।

नैन बान की चोट तैं,चोट परे मरि जाए।।”

व्याख्या:- रहीं ने नेत्र बाण को अचूक बताते हुए  है कि यदि ये बाण किसी को लग जाए, तो ब्यक्ति किसी कीमत पर नहीं बच सकता। भले ही एक बागरी बाण की मार से मनुष्य बच सकता है ; परन्तु नयन बाण इतना मर्मभेदी होता है , तो सीधे ह्रदय पर आघात करता है।  बाण से मनुष्य तो क्या बड़े-बड़े महापुरुष आहात होने से नहीं बच नहीं पाते।

“हरि रहीम ऐसी करि, ज्यों कमान सर पूर। 

छैंचि अपनी ओर को, डारि दियो पुनि दूर।।”

व्याख्या:- रहीम कहते हैं कि पहले तो हरी ने मेरे  साथ ऐसा व्यव्हार किया जैसे प्रत्यंचा बाण के साथ करती है अर्थात प्रत्यंचा को बाण छोड़ने से पहले खिंचा जाता है जिससे बाण प्रत्यंचा की ओर खिंचा जाता है। परन्तु जब छोड़ दिया जाता है , तो वह बहुत दूर जाकर  गिरता है। इस तरह श्रीकृष्ण के  प्रेम में डूबे रहीम उनके  दर्शन हेतु मंदिर में गए, तो उन्हें प्रवेश नहीं मिला जिससे उनके ह्रदय को बहुत ठेस पहुंची तथा वह बहुत उदासीन हो गए।

“यों रहीम सुख होत है, बढ़त देखि निज गोत। 

ज्यों बड़री अँखियाँ निरखि, को सुख होत।।”

व्याख्या:- रहीम कहते हैं कि भला कौन ऐसा होगा जो अपने वंश को बढ़ाते हुए नहीं देखना चाहता हो। वह कहते हैं कि अपने  वंश को बढ़ता  ठीक वैसे ही सुख प्राप्त होता है जैसे बड़ी-बड़ी आँखों को देखकर सुख की प्राप्ति होती है।

“‘रहिमन’ विपदाहू भली, जो थोरे दिन होय। 

हित अनहित या जगत में, जानि परत सब कोय।।”

व्याख्या:- रहीम कहते हैं कि  थोड़ी  विपत्ति सबसे अच्छी होती है क्योंकि सुख में तो सभी साथ होते हैं। जिसके कारण कौन हितैषी, कौन अपना,  पराया, कौन मित्र,कौन शत्रु  चल पाता। परन्तु जैसे ही विपत्ति आती है, तो यह तुरंत पता चल जाता है कि कौन मित्र है और कौन अमित्र।

Rahim ke Dohe
Rahim ke Dohe

“बिगरी बात बनै नहीं, लाख करौ किन कोय। 

रहिमन फाटे दूध को, मथे न माखन होय।।”

व्याख्या:- रहीम कहतेहिं कि एक बार जब बात बिगड़ जाती है, तो वो दुबारा सम्भल नहीं पाती उसके लिए चाहे जितनी भी कोशिश कर लो परन्तु वो नहीं बनती। जैसे यदि एक बार दूध फैट जाय , तो लहक मथने पर भी माखन प्राप्त नहीं किया जा सकता।

“मीन कटि जल धोइये, खाये अधिक पियास।
रहिमन प्रीति सराहिये, मूयेउ मीत कै आस।।”

व्याख्या:- रहीम कहते हैं कि जिनमें अटूट प्रेम होता है वे मरने के बाद भी मिलने की आस लगाये रहते हैं। उदाहरणार्थ मछली को काटने से पहले उसको पानी से खूब धोया जाता है।  फिर जब मछली पकाकर खा ली जाती है, तो खाने के बाद खूब प्यास लगती है क्योंकि मछली और पानी का ऐसा अटूट प्रेम होता है कि मछली मरने के बाद भी पानी का वियोग सहन नहीं कर पाती है।

“दीन सबन को लखत है, दीनहिं लखै न कोय।
जो रहीम दीनहिं लखै, दीनबन्धु सम होय।।”

व्याख्या:-रहीम कहते हैं कि दीन व्यक्ति सबकी ओर आशा भरी नजरों से देखता है; परन्तु कोई भी उसकी ओर सहायता करने के उछेश्य से नहीं देखता अर्थात कोई भी उसकी सहायता नहीं करना चाहता | यदि कोई व्यक्ति दीन की ओर सहायता भरी दृष्टि से देखे, तो वह स्वंय ईश्वर ही न बन जाये। परन्तु किसी के पास दीन लोगों के लिये समय नहीं होता और यदि समय होता भी है, तो दयाभावना नहीं होता है |

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दोस्तों हम उम्मीद करते हैं कि यह दोहा पसंद आया होगा। अगर आपको यह rahim ke dohe पसंद आया होगा तो तो अपने दोस्तों के पास sher करना भूलें।

हमने इस दोहे को सरल भाषा में अनुवाद करने का प्रयाश किया है ताकी छोटे बच्चे भी आसानी से समझ जाए।

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